जब कला के बारे में सोचती हूँ तो मन में भारतीय परम्पराओं और मान्यताओं के अनुसार यदि कला को अवतारी शक्ति की एक इकाई मानें तो श्रीकृष्ण सोलह कला के अवतार माने गए हैं। सोलह कलाओं से युक्त अवतार पूर्ण माना जाता है। इन सोलह कलाओं में प्रत्येक कला का अपना एक विशेष महत्व है । कला व्यक्ति के मन में बनी स्वार्थ, परिवार, क्षेत्र, धर्म, भाषा और जाति आदि की सीमाएँ मिटाकर विस्तृत और व्यापकता प्रदान करती है। व्यक्ति के मन को उदात्त बनाती है। वह व्यक्ति को “स्व” से निकालकर “वसुधैव कुटुम्बकम्” से जोड़ती है। दोस्तों यही तो डैम इंडिया ( D.A.M INDIA) का उदेश्य सभी को साथ लेकर चलना । फिर कहाँ हमारे इस ग्रुप आयु !जाति! धर्म की सीमाएं, बस है तो एक ही अर्थ साथ साथ चलना और समाज में एक नया वातावरण बनाना जहाँ कला के माध्यम से समरसता बनाना । समाज में कला की शक्ति से लोगों को संकीर्ण सीमाओं से ऊपर उठाकर उसे ऐसे ऊँचे स्थान पर पहुँचा दे जहाँ मनुष्य केवल मनुष्य रह जाता है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर के मुख से निकला “कला में मनुष्य अपने भावों की अभिव्यक्ति करता है ” तो प्लेटो ने कहा – “कला सत्य की अनुकृति की अनुकृति है।” टालस्टाय के शब्दों में अपने भावों की क्रिया रेखा, रंग, ध्वनि या शब्द द्वारा इस प्रकार अभिव्यक्ति करना कि उसे देखने या सुनने में भी वही भाव उत्पन्न हो जाए कला है। हृदय की गइराईयों से निकली अनुभूति जब कला का रूप लेती है, कलाकार का अन्तर्मन मानो मूर्त ले उठता है चाहे लेखनी उसका माध्यम हो या रंगों से भीगी तूलिका या सुरों की पुकार या वाद्यों की झंकार। कला ही आत्मिक शान्ति का माध्यम है। यह कठिन तपस्या है, साधना है। इसी के माध्यम से कलाकार सुनहरी और इन्द्रधनुषी आत्मा से स्वप्निल विचारों को साकार रूप देता है।डैम इंडिया ( D.A.M INDIA) का प्रत्येक सदस्य अपने मन और मस्तिष्क के स्तर पर कहीं ना कहीं रवीन्द्रनाथ ठाकुरजी, प्लेटो या फिर टालस्टाय से प्रभावित लग रहा है। हमारी पहली पेन्ट की गई दीवार के हर रंग में हमारा सत्य झलकने वाला है।
रंगों की बात भावों के साथ देती समाज को प्यार, समेटती लिंग जाति और धर्मो का अभाव डैम इंडिया की रंगीन हर दीवार । |
सीमा ‘स्मृति’ |